हमारा बचपन
"टैफिक में फंसा युवा भारत"
बचपन की यादों को जितना मैं सहेजना चाहती हूं, वह मुट्ठी में बंद रेत की तरह है जिसे मैं जितना ही जकड़ कर पकड़ने की कोशिश करती हूं वह उतनी ही तेजी से सरसराता हुआ मेरी मुटठी से निकल जाता है, और मेरा हाथ खाली का खाली ही रह जाता है।
पर फिर भी मैं अपनी कोशिश को आगे बढाऊंगी और अपने दिनों को आज के संदर्भ में याद करुंगी।
जन्म जमशेदपुर में होने के कारण हमलोगों ने कभी ट्रैफिक जाम को महसुस नहीं किया था। वह शहर इतना व्यवस्थित है। वहां के लोगों को इस महा मुसीबत का सामना आज भी नहीं करना पड़ता है। कारण शहर की अच्छी यातायात व्यवस्था तो है ही और दूसरा मुख्य कारण मुझे वहां कारखानों में होने वाला शिफ्ट ड्युटी भी लगता है। शिफ्ट ड्युटी के कारण टुकड़ों में लोग काम पर निकलते हैं और सामान्य ड्युटी वाले दस से पांच वाली अपनी शिफ्ट मजे से पूरी करते हैं। इस तरह कम चौड़ी (दिल्ली की तुलना में संकरी) सड़कें भी स्कूल, आफिस या फिर कारखानों में आने-जाने वालों के लिए हमेशा साफ और खुली रहती है। हर समय नियंत्रित ट्रैफिक।
अपनी शादी के बाद जब मुझे दिल्ली होते हुए पंजाब जाना पड़ता था तो दिल्ली स्टेशन की रोशनी मुझे चकाचौध करती थी। ट्रेन से ही जब लम्बा जाम देखती तो कारों की संख्या पर विश्वास नहीं होता था। लगता था शायद यही स्वर्ग है। रात की रोशनी में सभी गाड़ियां मुझे सफेद ही दिखती थी। और मैं यही सोचा करती थी कि क्या मेरे पास भी कभी गाड़ी होगी और मैं भी यूं ही लम्बे लाइन का इंतजार कर पाऊंगी। मुझे ट्रेन से जाते या आते वक्त दिल्ली की रंगरलियां ही सिर्फ दिखती थी। दूर दूर तक बल्ब का टिमटिमाना मुझे बहुत आकर्षित करता था। पर मैं यहां रहने का कभी सपना नहीं देखती थी लेकिन मुझे ट्रैफिक में फंसना रोमांचित करता था उस वक्त।
अब स्थिति बिल्कुल अलग है। मैं भी अब महानगर का हिस्सा हूं। रोशनी चकाचौध तो करती है और आकर्षित भी करती है पर मोह नहीं पाती। अब मजबूरी है तो उस जाम का हिस्सा मैं भी कभी कभी बन जाती हूं। बस में मैं बैठ बाहर टकटकी बांध देखती हूं जीवन की सच्चाई को जो अब मोहित नहीं करता। सिर्फ आगे बढ़ने की अंधी दौड़ को कायम रखने की जुगत ही मुझे जाम में फंसा देता है। महानगर की सच्चाई से जो जूझते हैं वह थक हार कर घर लौटते हैं और फिर ना जाने अगले दिन के लिए उर्जा कहां से ले आते हैं फिर से उस ट्रैफिक जाम से लड़ने का।
शादी हो या कोई पर्व फिर तो जाम की कोई बिसात नहीं। जाम में फंसा व्यक्ति सब को फोन पर ही बताता रहता है कि वह अब कितने देर में पहुंचेगा। पर मजे की बात यह भी है कि लोग जाम का बहाना भी खूब बनाते हैं। बस में खूब सुनने को मिल जाता है कि अरे यार, थोड़ी देर मेरा और वेट कर लो मैं बस पहुंचने ही वाला हूं, क्या करुं जाम में फंसा हूं। बहुत अच्छा बहाना है। फिर अगला भी कुछ नहीं कहता, ज्यादा जानकार व्यक्ति उसे दूसरा रास्ता समझाने की कोशिश करने लगेगा। ट्रैफिक सिग्नल पिक्चर देखने के बाद कुछ जाम में फंस कर अपने आमने सामने भीख मांगते लोगों को शक की निगाह से देखने लगते हैं। और उनका पिक्चराइजेशन भी करने लगते हैं कि फलाना बच्चा तो यूं ही दिखता था और ऐसे ही चीजें बेचता या भीख मांगता था।
जाम की त्रासदी उसमें फंसे लोग ही बता सकते हैं जो घर जल्द जल्द से लौटना चाहते हों और किसी वजह से जाम का हिस्सा हो गए हों। जाम में बिताया गया समय और ऊर्जा का ह्रास देश की बहुत बड़ी समस्या है। सरकार के पास बहुत बड़े बड़े एजंडे है। कई फ्लाईओवर बना चुकी है कई बना रही है पर जाम बदस्तूर जारी है।
जाम से राहत के कई तरीके लोग अपनाते हैं पर अगर सब मिल कर इसका समाधान खोजें तो शायद हम जाम रुपी महाकाल से बच पाएंगे।
मैं उन सारे लोगों को नमन पहले करना चाहुंगी वह जिस वजह से भी हों पर पब्लिक ट्रांसर्पोट इस्तेमाल करते हैं। कितनी दिक्कतों का सामना उन्हें करना पड़ता है। इसे मजबूरी का नाम गांधीजी नहीं समझना चाहिए।
सरकार को भी चाहिए कि वह पब्लिक ट्रांसर्पोट को ज्यादा से ज्यादा बेहतर बनाए। एसी बसों की संख्या भी उतनी ही ज्यादा हो ताकि लोग अपने कारों को घर पर छोड़ प्राइवेट बस का सफर करने में सकुचाए नहीं। बहुत सारे परेशानियों का हल यूं ही निकल जाएगा जब लोग अपने गाडियों का इस्तेमाल बहुत कम करना शुरू कर देंगे।
बस दुआ कीजिए कि अगली बार जब भी हम जाम में फंसे तो यह सोचने पर मजबूर हों कि क्या इससे बचा नहीं जा सकता है। हमारी युवा शक्ति यूं ही जाम में खड़े खड़े बूढ़ी हो जाएगी और हम सिर्फ युवा भारत होने का ढ़ोग करते रह जाऐंगे।
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सही मुद्दा उठाया है आपने ये जाम तो दिन पर दिन जा्नलेवा होता जा रहा है मगर कौन सुनेगा
जवाब देंहटाएंपर ट्रेफ़िक जाम हमें तो रोज रूलाता है.. क्या करें जिन्दगी का हिस्सा समझ कर झेल रहे हैं
जवाब देंहटाएंजमशेदपुर में बीता बचपन।
जवाब देंहटाएंएक जमशेदपुरियन का आकर्षण।
बचपन की यादें अनमोल।
लिखा है सुन्दर दिल को खोल।
बधाई।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
baat to sahi kahi aapne
जवाब देंहटाएंaapka yah lekh aaj amar ujala mein aaya hai..badhai
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