बुधवार, 4 जून 2008

हमारा बचपन और हम

मैं और मेरे पति अक्सर फुरसत के पलों में अपने बचपन की घटनाओं को याद करते कभी रोमांच से सिहर जाते हैं, तो कभी रुआंसा। मैने अपने से इतर भी कई बार महसुस किया है कि लोग अपनी बचपन की घटना सुनाते वक्त कितने उत्साहित हो जाते है अगर कुछ दुखद घटा हो तो थोड़ी देर के लिए दुखित भी हो जाते हैं. मतलब कि हम सब अपने बचपन को अपने यादों की एलबम में सजोए, दिल से लगाए रहते हैं. फुरसत में यादों के पलों को सांझा करने के रोमांच में कई बार घटनाओं को इतने बढ़ा चढा कर बोलते हैं कि सुनने वाला भी अपने हिसाब से ही उस घटना को रिसीव करता है. फेंकी हुई बातें खुद ही छांट लेता है. पर किस्से सुनने- सुनाने में मजेदार होते है। बस इसी आइडिया को लेकर लेकर हमारा बचपन नामक का यह बच्चा ब्लाग आपके सामने हाजिर है।

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