गुरुवार, 5 मार्च 2009

रजास्थान का नवलगढ़ या हमारा बिहार का पूसा

सुबह के उजाले से पहले हम राजस्थान के नवलगढ़ इलाके में पहुंच गए थे. गाड़ी से उतरते ही ऐसा लगा कि हम एक उच्चकोटी के वयवस्था में अपना तीन दीन व्यतीत करेंगे. हमें कमरा सबसे ऊपर और किनारे में दिया गया था शायद बच्चों के शोर को देखते हुए। कमरे में घुसने तक लग रहा था कि यह किसी पूर्व राजा का महल होगा। कमरे की सोजो सज्जा भी मनमोहक थी और पूरा महल रुची पूर्ण ढंग से सजा हुआ था। मैं यहां आने के पहले नवलगढ़ का नाम तक नहीं जानती थी। और शायद आप भी नहीं जानते हों। सोची इतनी छोटी जगह पर क्या देखने को मिलेगा। पर मैं सचमुच गलत थी मैने तीन दिन में जो कुछ देखा सुना वह मेरे सोच को अब ज्यादा व्यापक और समृद्ध बना दिया है।


नवलगढ़ जो शेखावटी के नाम से भी प्रसीद्ध है, राजा शेखावट द्वारा बनाया हुआ है। रुप विलास पैलस उनका ही था और वह अच्छे लम्बे चौड़े जगह में फैला हुआ है। पहले जैसा भी रहा हो पर अब पैलस को हेरीटेज के रुप में बदल कर विदेशी पर्यटकों को लुभाता है। सभी कुछ कायदे में चलता है आतिथ्य का भरपूर लुत्फ उठाया जा सकता है। बाग-बगीचे के साथ लगा खेत खलीहान सुबह को अति रोमांचित कर देता है। चुकि हम दिल्ली में रहते हैं और सुबह को कभी महसुस नहीं कर पाते इसलिए हमारी सुबह तोते और मोर के आवाज को सुनते और उन्हें देखते कभी नहीं होती। इसलिए यह हमारे लिए अति आनंद का क्षण था जब मोर को यूं खुले में घूमते हुए अपनी बच्ची को दिखाना। कुल मिलाकर सुबह की जो कल्पना की जा सकती है वह स्वार्गीक होती है और ऐसा ही हम वहां देख रहे थे।

विदेशी-देशी पर्यटकों को बुलाने के लिए एक कार्यशाला का आयोजन मोनारक्का की हवेली में किया गया था। पक्ष-विपक्ष में बातें हो रही थी। औरगैनिक लंच की व्यवस्था लोगों ने खेतों के बीच में की थी। वहां पर सारा खाना औरगैनिक तरीके से उपजाया हुआ था। और खीलाने का ढंग भी बिल्कुल देशी। खटीया ड़ाल कर बैठाया गया और पानी भी औरगैनिक पीलाई गई मतलब कुएँ का पानी।

राजस्थान जिसे हम रेतों का शहर भी कह सकते हैं और जहां पर्यटक रेत देखने और ऊँट की सवारी करने के लिए जाते हैं उस राजस्थान के नवलगढ़ को मैने एक नए रुप में देखा। वह था एक दृढ़ नवलगढ़ जो धरती आग उगलती थी वहीं अब हरे भरे खेत दिखते हैं. जहां पानी का कोई स्त्रोत नहीं है वहीं पानी लाया जाता है। पर वहां के लोग अपनी धरती को उर्वरा करने के लिए उससे अत्यधिक पैदावार की अपेक्षा नहीं करते बल्कि पुरानी पद्धती का अपनाते हुए खेती कर रहें हैं। औरगैनिक खेती मतलब वैसी खेती जहां पर हम मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए देशी खाद का उपयोग करते हैं। ना ऊपर से और ना ही मिट्टी में ही कोई रासायनिक छिड़काव किया जाता है। कीट पतंगों को मारने के लिए भी देशी तरीका अपनाया जाता है। किसान लोग अब समृद्ध हो रहें है इस तरह की खेती से उन्हें सामान के अच्छे दाम मिलते हैं। पुरानी पद्धती जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता था वह अब इस्तमाल किया जा रहा है। लोग अपने खेतों की घटती उर्वराशक्ति से परेशान होकर ही ऐसा कदम उठाय हैं। इस दौरान उन्हें पानी की भी कम व्यवस्था करनी पडती है।

नवलगढ़ के लोगों के चेहरे में एक कठोरता झलकती है। सनस्क्रीन लगा कर कोमल लड़कियों की झलक मुझे वहां नहीं दिखी। स्कूल-कॉलेज जाते लड़के-लड़कियां भोले भाले से दिखे। ग्रामिण भी शरीर से कठोर और भोले भाले हैं। शाररिक कठोरता उन्हें विरासत में मिली है। अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक शर्दी झेलने वाले लोग अपने आप को बचाकर अपने खेतों के उर्वरा शक्ति को बचाकर देश विदेश में अपने नाम कमा रहें हैं। छोटा सा शहर और पतली पलती गलियां जो सड़कों पर बढ़ते वाहन को वहन नहीं कर पा रहीं है और प्रायः गांव जाम का शिकार हो जाता है जिसे ठीक होने में घंटो लग जाते हैं। नागरीय वयवस्था को ठीक करने के लिए वहां के विधायक डॉ अजय कुमार अब दृढ़ संकल्प दिखते हैं।


पर्यटन के विकास की पूरी संभावना अब बन रही है और विकसित भी हो रही है। पर्यटक पहले से ही दिल्ली से सटे राज्य घूमने राजस्थान जाते रहें हैं। नवलगढ़ भी अब उनका नया गंतव्य बन रहा है कारण कई है- यहां हवेलियों की बहुत संख्या है. मोनारक्का की हवेली को तो यूं ही रखा गया है और बिना रंग रोगन के दर्शनिय बनाया गया है। वहीं पोद्दार की हवेली को आधुनिक तरीके से सजाया गया है और उस हवेली में पूरे राजस्थान के लोक की झलक मिलती है। जैसे ऊँट की तरह तरह की बग्घी, पगड़ियों की विभिन्न शैली, गहनों, कपड़ों का कलेक्शन काफी मजेदार था। औरगैनिक खेती को दिखाने और उसी पृष्टभूमि में आतिथ्य सतकार करने के लिए ग्रामिणों ने रुरल टुरिज्म का रुप तैयार किया है। वह भी आश्चर्यजनक रुप से फलित हो रहा है। और औरगैनिक खेती को समझने और समझाने के लिए तो दर्शनिय तो हो ही गया है।


मैं वहां से लौटकर अपने दादी घर को याद कर रही थी कि लगभग वैसा ही मेरे दादा जी द्वारा बनाया गया शांति-निकेतन है जो दुर्भाग्य से बिहार के पूसा में है। बिहार जिसे देखने कोई पर्यटक बमुशिकल पहुंच पाता है और वह भी पूसा नहीं जाता। गया, पटना देखकर अपनी भारत यात्रा समाप्त समझता है। वहीं मेरा घर जो विशाल हवेलीनुमा है हांलाकि उसमें कोई चित्रकारी नहीं पर चारों तरफ से जमीन और फुलवारी से घिरा हुआ है। घर के सामने पूसा कृषि विज्ञान का लहलहाता खेत है। और हमारे घर के पिछवाड़े काफी दूर दूर तक खेत है। घर पूसा कृषी विज्ञाण के बगल में होने के और रोड़ पर होने के कारण लोग पुरानी पड़े हमारे घर को दूर से देखते हुए जाते हैं। घर पर एक कोने पर बना महावीर मंदिर भी है जिसे लोग प्रणाम करते हुए जाते हैं। और पुराने लोग डॉक्टर साहब की हवेली को देखते हैं।


पर मैं अगर यह सोचुं कि मैं उस घर को आबाद करुंगी और उसे दर्शनिय बनाने के लिए हेरिटेज का रुप दुंगी जिससे देशी पर्यटक या पूसा कृषि विज्ञाण के छात्र-छात्रा रह सकें तो यह मेरे लिए संभव नहीं होगा। कारण भी कई हैं। बिहार की प्रशासनिक व्यवस्था बहुत लाचार है। बिहार जैसे गांव में उन्नति की बात कई बार प्राण घातक होती है। पूसा में घर से लगे बाजार में दिनदहाड़े एक डॉक्टर को गोली मार दी गई। और यह समाचार आम है।

बिहार में प्रशासन भी उतना ही कमजोर है जितना वहां के लोग। लोगों में भी हिम्मत नहीं है। लालू जो पंद्रह सालों तक खुद और फिर अपनी निरक्षर पत्नी को सत्ता में बिठाकर यह साबित कर दिया कि बिहार में उसकी तूती बोलती है। बिहारी लोग पूरे भारत में फैले हुए हैं और उनकी हालत किसी से भी छुपी नहीं है। बिहारी पहले एक गाली हुआ करती थी पर अब स्थिति वैसी नहीं रही। प्रशासन बदले ना बदले लोग जगह छोड़ कर अपने खुद का विस्तार कर रहें हैं। नवलगढ़ के लोगों की भी स्थिति वैसी ही है वहां प्रशासन कोई कदम नहीं उठाता पर वह आतंक के साये से मुक्त हैं। दिन दहाड़े हत्या नहीं होती। मेहनतानुसार लोग पैसे पाते है। गृह उद्योग भी बंधेज के काम से भरा पड़ा है। पर पूसा में ना तो कोई गृहउद्योग नुमा चीज है और ना ही हम वहॉं आतंक रहीत रह सकते हैं।


और आज कल के ही दौरान मुझे पता चला कि मेरी छोटी चाची ने खुद स्कूल खोला है। यह महज इतफाक था कि मैं वहां के बारे में सोच रही थी और यह सुखद समाचार मिल गया। हमारी शुभकामनाए और आप सभी का आशिर्वाद चाहिए बिहार के पूसा गांव में स्कूल को सफलता से चलाने के लिए। हेरिटेज ना सही पर घर एक विद्यालय बन जाय यह कुल की प्रतिष्ठा को तो बढ़ाता ही है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. Rajastha aapko achh laga...jaan kar khushi hui....aise na jaane kitne hi aur bhi shahar hai jo apne fort aur raja maharajaon ke liye parsidh hai..

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  2. Darbhanga Maharaj ke bare me aap logo ne suna hoga. jyada varnan na karke agar kahun to Maa Sita ki Mithilanchal nagari me ek Aalishan kila hai jise a ati sundar darshniya asthal banaya ja sakta tha, use atikramankarion ne barbad karke rakh diya hai. Kya vbataye, Puratatwavadiyo ne bhi ise apne layak nahi samjha!! ghor aashcharya hai.

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  3. aap ko nawalgarh bhut achha laga yeh jan kar bhut kushi hui ji.
    agar aap dubara kabe bi jane ka program banaye to ak baar nawalgarh jarur se aake jaiye ga.
    RAM RAM JI

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